subodh

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Saturday 8 November 2014

33 . पैसा बोलता है ...

अगर अमीरी आपके लिए महत्त्वपूर्ण  है तो क्या ये आपके डेली के कामों में प्रायोरिटी रखती है ?

क्या आप हर रोज़ ऐसा कुछ अलग कर रहे है जिससे आप अमीरी तक पहुँच सके ?

अमीरी या गरीबी मेरी निगाहों में भाग्य की बात नहीं है ये आपके सतत प्रयासों का नतीजा होती है, आपके कर्म से निर्धारित होती है .गरीबी और अमीरी दोनों ही आपके कामों का परिणाम है -कुछ ऐसे काम जिन्हे अमुक तरीके से करना चाहिए  और कुछ ऐसे काम जो नहीं करने चाहिए ये सही- सही जानना ही आपकी अमीरी और ये नहीं जानना ही आपकी गरीबी की बुनियाद है .

महत्त्वपूर्ण ये है कि आप ये कैसे जानेंगे कि कौनसा काम करना चाहिए और कौन सा नहीं करना चाहिए ? 

इसके लिए आपको खुद को लगातार शिक्षित करना पड़ेगा. ये जानना पड़ेगा कि अमीरों की सोच,उनकी भावनाएं ,उनकी कार्यपद्धति क्या है और वो जैसी भी है वैसी क्यों है , उनकी सोच एक निर्धारित पैटर्न पर ही क्यों है ,वो ऐसी किन चीज़ों पर जोर देते है जिन्हे नेग्लेक्ट करना भारी पड़ सकता है !

आपको पढ़ कर शायद आश्चर्य हो कि अमीरों की सोच गरीबों की सोच से सिर्फ हलकी सी अलग नहीं होती है बल्कि तकरीबन विपरीत होती है .

गरीबों के लिए जो शब्द महत्व पूर्ण होते है उनका अमीरों के लिए कोई महत्व ही नहीं होता बल्कि कई मामलों में तो गरीबों के लिए जो दर्दभरा अनुभव होता है अमीरों के लिए वो अपनी संपत्ति बढ़ाने का अवसर होता है ,जैसे खरीदने के समय महँगाई . या जैसे बेचने के टाइम मंदी . दोनों ही स्थिति में गरीब कुछ खोता है और अमीर पैसा बनाता है .

गरीब जिस चीज़ की सबसे ज्यादा परवाह करता है वो है नौकरी की सुरक्षा  .जबकि  नौकरी करने का एक सीधा से मतलब है आप अपने श्रम से किसी दूसरे को अमीर बना रहे हो और  अमीर और गरीब में सबसे बड़ा फर्क ये नज़र आता है कि अमीरों  को नौकरी करना ही समझ में नहीं आता . लिहाजा वे एम्प्लोयी न बनकर एम्प्लायर बनते है. नौकरी करते नहीं है बल्कि करवाते है . 

कुछ लोग इस बात को समझ जाते है कि ज़िन्दगी में लम्बी ग्रोथ के लिए आपको अपना खुद का व्यवसाय करना पड़ेगा ,अगर अमीर बनना है तो एम्प्लायर बनना पड़ेगा , खुद का बिज़नेस करना पड़ेगा और वो ऐसा ही करते है .

वो कोई बिज़नेस शुरू करते है और असफल हो जाते है , क्यों ?

 ऐसा क्यों होता है कि कोई किसी लाइन में जाकर भयंकर पैसा पैदा करता है और कोई लगाई हुई पूँजी भी गवां बैठता है ?

जिस तरह गरीब आदमी पैसे के सिद्धांतों को नहीं समझ पाता उसी तरह ये असफल बिजनेसमैन बिज़नेस के सिद्धांतों को नहीं समझ पाते .मैं उन असफल बिजनेसमैन को गरीब और सफल बिजनेसमैन को अमीर कहूँगा .
गरीब  प्रोडक्ट बेहतर करने का प्रयास करता है कि मेरा प्रोडक्ट ,मेरी क्वालिटी अच्छी हो ,वो अपनी पूरी एनर्जी,पूरी ताकत प्रोडक्ट बेहतर बनाने में लगा देता है जबकि अमीर प्रोडक्ट पर नहीं टीम बनाने पर काम करता है वो एक प्रॉपर सिस्टम बनाने पर काम करता है ,टीम को शिक्षित करने ,क्लाइंट को संतुष्ट करने , मार्केटिंग करने पर मेहनत करता है वो जानता है कि प्रोडक्ट महत्वपूर्ण है लेकिन वो ये भी जानता है कि प्रोडक्ट से ज्यादा महत्व प्रेजेंटेशन का है ,मार्केटिंग का है,कस्टमर केयर सपोर्ट सिस्टम का है .

गरीब का विज़न बड़ा नहीं होता वो एक स्टोर जिस पर उसने खुद बैठना है वही तक सोच रखता है लिहाजा वो एक पूरा सिस्टम बनाने की सोच नहीं रखता है और इसी की वजह से वो मार खाता है वो हर चीज़ की जिम्मेदारी  खुद उठाना चाहता है और इसी वजह से  अपने नीचे एक जवाबदेह समूह तैयार नहीं कर पाता. हकीकत में  उसके अंदर अभी भी एक नौकर छुपा हुआ है ,वो बिज़नेस के नाम पर नौकरी करता है . जबकि अमीर सबसे पहले,हाँ प्रोडक्ट से भी पहले एक जवाबदेह समूह तैयार करता है .

गरीब  सबसे पहले खुद को पेमेंट देना चाहता है  , वो व्यवसाय के मूल सिद्धांत को भूल गया है या हो सकता  कि उसे पता ही नहीं हो कि  बिजनेसमैन  को बिज़नेस के शुरू में नहीं  सबसे आखिर में और सबसे ज्यादा  भुगतान मिलता है .

गरीब को  जानना चाहिए कि बिज़नेस में सबसे पहले इंफ्रास्ट्रक्चर पर होने वाले खर्चे निकाले जाते है. फिर एम्प्लोयी को , फिर उन प्रोफेशनल सेवाएं देने वालों को  जिनकी बदौलत कंपनी ग्रो कर रही है,  फिर उन निवेशकों को जिन्होंने उस पर, उसके कॉन्सेप्ट पर भरोसा करकर उसकी  कंपनी में पैसा लगाया है ,पेमेंट दिया जाता है और तब जो बचता है वो उसको  मिलता है और वही उसे  लेना चाहिए  - अमीर बिजनेसमैन यही करते है ! 

जबकि होता ये है कि गरीब सबसे पहले खुद को पेमेंट करता है फिर अपने शौक को,अपनी इच्छाओं को पूरा करता है - वो प्रॉफिट के साथ-साथ प्रिंसिपल अमाउंट का भी कुछ हिस्सा  खर्च कर देता है ( कई मर्तवा तो वो निवेशकों तक के पैसे का भी इस्तेमाल  कर लेता है ) और तब नंबर उन लोगों का आता है जिनके पेमेंट का उस पर सबसे ज्यादा प्रेशर होता है ,लिहाजा कंपनी की पेमेंट को लेकर साख बिगड़ती जाती है , सप्लायर उनको माल देने में हिला-हवाली  करते है या लेट देते है या मना कर देते है ,एम्प्लोयी उन्हें छोड़  कर चले जाते है और अंततः जो होना चाहिए था वो होता है ,वह असफल होकर या तो नए बिज़नेस की तलाश शुरू कर देता है या अपने सुरक्षित खोल में लौट जाता है उसी पुरानी या उससे मिलती-जुलती नौकरी में. 

और भी बहुत सी वजहें है जो किसी गरीब मानसिकता के व्यक्ति को गरीबी के दलदल से निकलने नहीं देती - उन के बारे में किसी अगली पोस्ट में ....
-सुबोध 

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